भानुभक्त पोखरेल – नर- वीरको आरती
(मधुपर्क माघ, २०६७)
धृति-शक्ति-समुज्ज्वल संसृति-हीर
वातोद्वेलित सागर-नीर
किञ्चन पत्थर-गेगर-लहरे
स्वल्प समाविल उत्तर खहरे
ईषदस्थिर-सुस्थिर, धीर-अधीर
विश्वविभावन हे नर-वीर !
चिर अपराजित पौरख-प्याली
सिर्जन-नायक, धी-बलशाली
खतरासित खेल्न समुत्सुक
हे सुहठी !
छिमली गहनाम्बर, सागर शैलतटी
विजय-ध्वज हात लिने लहडी
रगडी-झगडी
पहराहरू पेल्न समुद्यत
उद्धत क्रीडनका दहडी
स्थिति-गतिशील, सलील समीर
विश्वविभावन हे नर-वीर !
अचिरक्रिय, कर्मठ हे वन-माली !
प्रभविष्णु, महेच्छ, महोद्यम
पाताल-नियाली, जलचाली !
ताहश दीन, अकिञ्चन
त्रास-भयी !
एताहश मैमथ-सिंहजयी
केवल करपात्री
विजयोत्सवयात्री
धरतीतल, गगनस्थल, तारकबेली
गर्न पुगिस् तँ चिदम्बरमा रसकेली
स्थिर सांयात्रिक शौर्य-शरीर
विश्वविभावन हे नर-वीर !
स्वर सान्वेषणशील सुचक्षु
सदसन्तोषरसी जिज्ञासु
प्रकृति-बधूका वर दिग्विजयी
भय-मृत्युञ्जय कालजयी
गति-जीवनयोग, अमोघ तँ तीर
सृष्टि-शिखरको अप्रतिवीर
विश्वविभावन हे नर-वीर !